गीत :- रिमझिम पड़े फुहार सुहानी, ऋतु वर्षा की आये
ऋतु    /   मौसम,      विधा- सार छंद गीत

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रिमझिम पड़े फुहार सुहानी, ऋतु वर्षा की आये ।

सँवर सँवर कर वृक्ष लताएं ,मन को रही रिझाये ।

 

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 घेरे में  सागर  की  बाँहों ,सरिता  है   इठलाती ।

लहर-लहर बनकर हमजोली , झूम-झूम कर गाती ।

अवनी के शुभ आमंत्रण पर ,उमड़-घुमड़ घन आये ।

सँवर सँवर कर--------------

 

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दादुर ,हरि का नृत्य मदिर है, कोकिल गान अनोखा ।

ताप-उष्ण से जले हृदय पर ,शरद वायु का झोंखा ।

बहक रहा मादक मौसम भी ,लय -सुर -ताल मिलाये ।

सँवर सँवर कर--------------

 

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कारी  बदरी  ने वआँगन में, अनुपम  छटा बिखेरी ।

चपल, चतुर बन लहक रही है,चित को चुरा चितेरी ।

नव कोंपल उभरे वसुधा में, हरित हृदय कर जाए ।

सँवर सँवर कर--------------

 

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चूनर धानी ओढ़  धरा भी , दुल्हन  सी  लगती  है ।

शबनम के वो मोती चुनकर ,निज आँचल भरती है ।

दृश्य मनोहर ताक प्रकृति का ,हृदय हिलोरें खाए ।

 

सँवर सँवर कर--------------

 

 

 

 


प्रस्तुति 

युवा गौरव। रीना गोयल

(सरस्वती नगर) हरियाणा