कलयुग में प्रेरणादाई है श्री कृष्ण का जीवन - शम्भू पंवार
 

 

हिन्दू धर्म  में जन्माष्टमी का त्यौहार बहुत विशेष स्थान रखता है।भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग तरीके से भगवान श्री कृष्ण के जन्मोउत्सव के रूप में  बड़ी आस्था एवं हर्षोउल्लास से मनाया जाता है ।भारत मे ही नही विदेशों में भी भारतीय परिवारों  द्वारा जन्माष्टमी परंपरागत रूप से उत्साह से मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार पृथ्वी पर जब-जब भी अत्याचार बढ़े हैं, तब पापियों का नाश  करने के लिए भगवान ने साकार रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया है। मथुरा के राजा कंस के अत्याचारों से मुक्त करने के लिए भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में पृथ्वी का जन्म लिया और भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के पुत्र श्री कृष्ण के रूप में अवतरित हुए ।इसलिए जन्मोत्सव के रूप में जन्माष्टमी का त्योहार बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में श्री कृष्ण ने जन्म लिया उस समय मथुरा के राजा कंस थे जिसके अत्याचारों से प्रजा काफी त्रस्त थी ।कंस को एक बार आकाशवाणी हुई कि उसकी बहन देवकी की आठवीं संतान उसका वध करेगी । यह जानकर कंस ने अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को काल कोठरी में बंद कर दिया ।कंस ने देवकी के साथ बच्चों को को तो मार डाला था। उधर भगवान विष्णु ने वासुदेव जी को कहा कि श्री कृष्ण को गोकुल में यशोदा माता और नंद बाबा के पास पहुंचा दो। कृष्ण को वहां कोई खतरा नहीं होगा और मामा कंस से भी सुरक्षित रहेगा । श्री कृष्ण का पालन पोषण यशोदा माता और नंद बाबा ने किया तभी से प्रतिवर्ष जन्माष्टमी का त्योहार पर गोकुल में विशेष  आयोजन होते हैं।

 

 

गोकुल में विशेष उत्सव

 

जन्माष्टमी पर  पूरा गोकुल श्री कृष्ण की भक्ति के रंग में सरोबार रहता है। गोकुल में जन्माष्टमी विशेष तौर पर खास मानी जाती है। क्योंकि वहां की गलियों ओर रास्तो में कान्हा जी लीलाएं की थी।जो आज भी  श्री कृष्ण  का अहसास कराती है।मथुरा में भी जन्माष्टमी पर भव्य आयोजन किये जाते है।

 

 

मंदिरों की भव्य सजावट

 

जन्माष्टमी  की तैयारियां रक्षाबंधन के बाद से ही शुरू हो जाती है, मंदिरों में रंग रोगन विभिन्न तरह के फूलों की सजावट रंग बिरंगी लाइटों,झालरों से मंदिरों को सजाया जाता है। मंदिरों में बहुत ही सुंदर और अलौकिक झांकियां सजाई जाती है। कान्हा जी की प्रतिमा का अलौकिक श्रृंगार किया जाता है। माखन मिश्री का भोग लगाया जाता है।इसके अलावा खीरे, फल , मेवा, पंजीरी का भोग भी लगाया जाता है।

 

 

दही- हांडी प्रतियोगिता

 

देशभर में युवाओं के समूह द्वारा कॉलोनी,सोसायटी, बस्तियों में एवं मुख्य बाजारों में दही हांडी फोड़ने की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है। और मटकी फोड़ने वाले को पुरस्कार भी दिया जाता है। दही मटकी की भिन्न-भिन्न रूप में प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है।इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए  युवाओं में भारी उत्साह देखने को मिलता है। जन्माष्टमी का व्रत स्त्री और पुरुष दोनों ही बड़े आस्था से करते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार जो व्यक्ति जन्माष्टमी का व्रत श्रद्धा से करता है उसके पास लक्ष्मी का वास होता है। व्रत करने वाले  प्रातः स्नान करके कान्हा जी की पूजा करते है।पूरे दिन निर्जल व्रत रखते हुवे रात्रि 12 बजे पश्चात चरणामृत का  प्रसाद लेकर उपवास खोला जाता है।