"खख्याम" - पल दो पल का शायर हूँ

 

जिनके लिए संगीत शोर नहीं सुकून था, राहत था, प्रेम की गहराई में धंसने और भींगकर बाहर निकलने का अवसर था। प्रेम के लिए खुला आकाश और आंसुओं के लिए मुलायम तकिया था।खय्याम की शख्सियत का अंदाजा उनके शानदार संगीत से लगाया जा सकता है।कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है' ,जैसे ही यह गीत सुनते है जहन में संगीत के जादूगर संगीतकार खय्याम नाम आता है ।खख्याम साहाब का पूरा नाम मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी था लेकिन फिल्म जगत में उन्हें खय्याम के नाम से पहचान मिली, आज खय्याम के संगीत की दुनिया दीवानी है, पंजाब के नवांशहर में जन्मे मोहम्मद जहूर खय्याम संगीत की दुनिया की शुरुआत महज17 साल की उम्र में लुधियाना से शुरू किया था खय्याम साहब 50 के दशक से ही हिंदी सिनेमा में सक्रिय थे ख़य्याम ने पहली बार फिल्म 'हीर रांझा' में संगीत दिया लेकिन मोहम्मद रफ़ी के गीत 'अकेले में वह घबराते तो होंगे' से उन्हें पहचान मिली। 1961 में आई फिल्म 'शोला और शबनम' ने उन्हें संगीतकार के रूप में स्थापित कर दिया। खुद हीरो बनना चाहते थे खय्याम को एस.डी नारंग की फिल्म ये है जिंदगी में बतौर एक्टर काम करने का मौका भी मिला,यह पहली और अंतिम फिल्म थी पर घर वालों को फिल्मों में काम करना पंसद नही था लेकिन बाद में उनकी दिलचस्पी संगीत की तरफ बढ़ने लगी और काफी जद्दोजहद के बाद घरवालों  ने उन्हें संगीत सीखने की इजाजत दी.खख्याम के गुरु संगीतकार हुस्नलाल-भगतराम ने प्लेबैक सिंगिंग का मौका  दिया था।को-सिंगर जोहरा जी थीं और कलाम फैज अहमद फैज का था। पहली कमाई 200 रुपए थी ।ख़य्याम की पत्नी जगजीत कौर भी अच्छी गायिका हैं और उन्होंने ख़य्याम के साथ 'बाज़ार', 'शगुन' और 'उमराव जान' में काम भी किया है। खय्याम ने हिंदी सिनेमा को एक से बढ़कर एक हिट गीत दिए. अपने शानदार काम के लिए उन्हें कई सारे अवॉर्ड भी मिले हैं. उन्हें साल 2007 में संगीत नाटक एकेडमी अवॉर्ड और साल साल 2011 में पद्म भूषण जैसे सम्मानों से नवाजा गया. कभी-कभी और उमराव जान के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड और उमराव जान के लिए नेशनल अवॉर्ड भी मिला. फिल्म इंडस्ट्री में करीब 40 साल काम किया और 35 फिल्मों में संगीत दिया

 

 

90वें जन्मदिन पर ट्रस्ट बनाया-

 

खय्याम ने निजी जिंदगी में कई मुश्किलों का सामना किया। एकलौते बेटे की दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था इस लिए अपनी करोडों की कमाई को अपने  90वें जन्मदिन पर खय्याम साहब ने बॉलीवुड को एक अनोखा रिटर्न गिफ्ट दिया था। उन्होंने जीवन भर की कमाई को एक ट्रस्ट के नाम करने का ऐलान किया था। तकरीबन 12 करोड़ रुपए की रकम ट्रस्ट को दी गई। इस पैसे से जरूरतमंद कलाकारों की मदद की जाने लगी। गजल गायक तलत अजीज और उनकी पत्नी बीना को मुख्य ट्रस्टी बनाया गया। खय्याम ने कभी-कभी, उमराव जान, त्रिशूल, नूरी, बाजार, रजिया सुल्तान जैसी फिल्मों के संगीत दिया। 'इन आंखों की मस्ती के', 'बड़ी वफा से निभाई हमने...', 'फिर छिड़ी रात बात फूलों की'वो सुबह कभी तो आएगी', 'जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें', 'बुझा दिए हैं खुद अपने हाथों, 'ठहरिए होश में आ लूं', 'तुम अपना रंजो गम अपनी परेशानी मुझे दे दो', 'शामे गम की कसम', 'बहारों मेरा जीवन भी संवारो' जैसे अनेकों गीत में अपने संगीत से चार चांद लगा चुके हैं 

 

 

10 सुपरहिट गीत...

 

न जाने क्‍या हुआ... चांदनी रात में... इन आंखों की मस्‍ती के... मैं पल दो पल का शायर हूं... दिखाये दिये यूं... आजा रे आजा रे ओ मेरे दिलबर आजा... कभी कभी मेरे दिल में... ऐ दिले नादान... चोरी चोरी कोई आये... दिल चीज क्‍या...।।हिंदी सिनेमा को उन्‍होंने एक से बढ़कर एक गीत दिये. इन गीतों में उनकी यादें अनंतकाल तक के लिए जीवित रहेंगी.अलविदा,खय्याम साहब ! अपने गीतों के रूप में आप सदा हमारी धड़कनों में शामिल रहेंगे !

 

 


प्रस्तुति 

डॉ रचनासिंह"रश्मि"

आगरा, उत्तर प्रदेश