सावन के तीसरे सोमवार में महादेव के संग हुई नागदेव की भी पूजा-आराधना



नाग पंचमी पर पुजा अर्चना करती महिलाएं

 

परंपरागत ढंग से मनाई गई नाग पंचमी सावन के तीसरे सोमवार पर हुई नाग पंचमी पर लोगों ने नाग पंचमी को दिया विशेष महत्व। 

 

कहानियों की मानें तो स्त्रियां नागदेव को नाग पंचमी पर भाई मांग कर करती है पूजा।

 

युवा गौरव हिमांशू दुबे

 

कानपुर देहात ब्यूरो। जनपद में हिंदू मान्यता के मुताबिक सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी का पावन पर्व बड़े धूम धाम के साथ मनाने की प्रथा अनवरत चलती चली आ रही है। धर्मशास्त्रों के अनुसार नवरत्नों की प्राप्ति के लिए हुए समुद्र-मंथन के दौरान नाग को मथानी की रस्सी के रुप में इस्तेमाल किया गया था। जिस कारण हिंदू सम्प्रदाय में नाग देवता का एक विशेष स्थान है। शिवालयों के पुजारियों ने ने इस पर्व से जुड़ी एक कथा का जिक्र करते हुए बताया की बीते समय में एक सेठ हुआ करते थे। जिनके सात बेटे थे। सातों की शादी हो चुकी थी। सबसे छोटे बेटे की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील महिला थी, लेकिन उस महिला का कोई भाई नहीं था।

 

एक दिन घर की बड़ी बहू ने घर को लीपने के लिए खेत से पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा। इस बात पर घर की सभी बहुएं तैयार होकर उनके साथ खेत में जा पहुंची, जहां डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने का काम करने लगीं। तभी वहां एक विशाल काय नाग फन निकाल कर बाहर निकल आया। जिससे ड़रकर बड़ी बहू ने उसे धारदार खुरपी से मारना शुरू कर दिया। इस बर्ताव पर छोटी बहू ने उसे रोका। जिस पर छोटी बहू के कहने पर बड़ी बहू ने सांप को आखिर छोड़ दिया लेकिन वह नाग भागने के बजाय पास में ही बैठा रहा। इस दौरान छोटी बहू उस नाग से यह कहकर चली गई कि हम अभी लौटते हैं तुम जाना मत। लेकिन छोटी बहू अपने काम में इस कदर व्यस्त हो गई की नाग से कही अपनी बात को भूल गई। 

 

फिर क्या था अगले दिन उसे जब अपनी बात याद आई। तो वह भागी-भागी उस ओर तत्काल मौके पर गई, जहां नाग उसी स्थान पर बैठा मिला। छोटी बहू ने नाग को देखकर कहा- सर्प भैया नमस्कार। नाग ने कहा- 'तूने मुझे भैया कहा तो तुझे माफ करता हूं, नहीं तो झूठ बोलने के अपराध में तुझे अभी डस लेता। छोटी बहू ने उससे अपनी गलती की माफी मांगी, तो सांप ने भी उसे अपनी बहन बना लिया। कुछ दिन के अंतराल के बाद वहीं सांप इंसानी रूप लेकर छोटी बहू के घर पहुंचा और बोला कि 'मेरी बहन को भेज दो।' सबने कहा कि 'इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। रास्ते में नाग ने छोटी बहू को बताया कि वह वही नाग है और उसे ड़रने की जरूरत नहीं। जहां चला न जाए मेरी पूंछ पकड़ लेना। बहन ने भाई की बात मानी और वह जा पहुंचे वह सांप का घर था, वहां धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई। एक दिन भूलवश छोटी बहू ने नाग को ठंडे की जगह गर्म दूध दे दिया. इससे उसका मुंह जल गया। इस पर सांप की मां बहुत गुस्सा हुई। तब सांप को लगा कि बहन को घर भेज देना चाहिए। इस पर उसे सोना, चांदी और खूब सामान देकर घर भेज दिया गया। 

 

सांप ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा खूब फैल गई और रानी ने भी सुनी। रानी ने राजा से उस हार की मांग की। राजा के मंत्रि‍यों ने छोटी बहू से हार लाकर रानी को दे दिया। छोटी बहू ने मन ही मन अपने भाई को याद किया ओर कहा- भाई, रानी ने हार छीन लिया, तुम ऐसा करो कि जब रानी हार पहने तो वह सांप बन जाए और जब लौटा दे तो फिर से हीरे और मणियों का हो जाए। सांप ने वैसा ही किया। रानी से हार वापस तो मिल गया, लेकिन बड़ी बहू ने उसके पति के कान भर दिए। पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर पूछा - यह धन तुझे कौन देता है? छोटी बहू ने सांप को याद किया और वह प्रकट हो गया। इसके बाद छोटी बहू के पति ने नाग देवता का सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी पर स्त्रियां नाग को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं।