वाणेश्वर मंदिर :- ग्रंथों को पढ़कर इस महादेव मदिंर की हकीकत जानने को रहती व्याकुलता 
 

 

पौराणिक वाणेश्वर महादेव का मंदिर लोगों के लिए बना आस्था व आराधना का केंद्र, बनीपारा जिनई में स्थित है मदिंर, वाणासुर ने अपनी पुत्री ऊषा के लिये स्थापित की थी शिवलिंग

 


युवा गौरव। हिमांशू दुबे 

 

कानपुर देहात ब्यूरो। पौराणिक वाणेश्वर महादेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। इतिहास लेखक प्रो. लक्ष्मीकांत त्रिपाठी के अनुसार सिठऊपुरवा (श्रोणितपुर) दैत्यराज वाणासुर की राजधानी थी। दैत्यराज बलि के पुत्र वाणासुर ने मंदिर में विशाल शिवलिंग की स्थापना की थी। श्रीकृष्ण वाणासुर युद्ध के बाद स्थल ध्वस्त हो गया था। परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने इसका जीर्णोद्धार कराकर वाणपुरा जन्मेजय नाम रखा था, जो अपभ्रंश रूप में बनीपारा जिनई हो गया। मंदिर के पास शिव तालाब, टीला, ऊषा बुर्ज, विष्णु व रेवंत की मूर्तिया पौराणिकता को प्रमाणित करती हैं। आपको बात दे कि आज भी लोग महाभारत जैसे ग्रंथ पढ़कर उसकी हकीकत जानने को व्याकुल रहते है। जिसके लिये आज भी इस देश के कई स्थानों पर ऐसे ऐतिहासिक स्थल व मंदिर बने हुए है। लोगों द्वारा बताया जाता है कि उसी महाभारत काल के दैत्यराज वाणासुर जिसका एक साम्राज्य सिठऊपुरवा था। वाणासुर काफी बलवान व क्रूर दैत्य राजा था, जिससे प्रजा खौफ खाती थी। भगवान शिव की पूजा त्रेता द्वापर युग से लेकर कलियुग तक की जा रही है। जहां देवता देवो के देव महादेव को अपना आराध्य मानते थे, वहीं असुर भी महादेव को अपना पूज्यदेव मानते थे। उनका कठोर तप करके उनसे वरदान प्राप्त कर देवताओं व ऋषियों पर अत्याचार करते थे। ऐसे शिव शंकर का एक प्राचीन महाभारत कालीन वाणेश्वर मंदिर आज भी रूरा क्षेत्र के बनीपारा जिनई में स्थित है। जहां शिवरात्रि जैसे महापर्व में लोगों का तांता लगता है। वहीं सावन के महीने में हजारों श्रद्धालु दर्शन कर झंडे व घंटा चढ़ाकर मनौती मनाते है। स्थानीय लोगों का मानना है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग वाणासुर ने अपनी पुत्री ऊषा के लिये स्थापित की थी। इसलिये आज भी दैत्य पुत्री ऊषा भोर पहर सबसे पहले मंदिर में पूजा आराधना करती है और शिवलिंग पर पुष्प चढ़ाती है।

 

ऊषा ने कठोर तप कर मांगी थी स्थापना

 

दैत्यराज की पुत्री ऊषा भगवान शिव की भक्त थी। एक बार उसने भोलेनाथ की घनघोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने स्वयं दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा तो ऊषा ने कहा प्रभु आप स्वयं हमारे राज्य मे विराजमान हो जाये। जिस पर भगवान शिव ने कहा अगर तुम्हारे पिता मेरी शिवलिंग लायेंगे और जहां स्थापित कर देंगे तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। पुत्री के कहने पर जब वाणासुर शिवलिंग लेकर राज्य की तरफ चला तो रास्ते मे लघुशंका लग आई। भगवान शिव ने सोचा कि अगर मैं राज्य में स्थापित हो गया, तो दैत्य तप करके लोगों का संहार करेंगे। वह ब्राह्मण का भेष रखकर पहुंच गए और बोले महाराज परेशान हो। दौत्यराज बोले लघुशंका जाना है और शिवलिंग हाथ में है, नीचे नहीं रख सकता। ब्राह्मण बोले लाओ मैं पकड़ लेता हूं, आप करके आ जाओ। जैसे ही दैत्यराज लघुशंका करने लगा, ब्राह्मण चिल्लाया महाराज आओ, शिवलिंग छूटा जा रहा है। जब तक वाणासुर आया तब तक शिवलिंग छूट कर जमीन में समा गया। गुस्से में दैत्यराज ने खुदाई शुरू की, लेकिन उसका अंत नहीं मिला। वही पवित्र शिव स्थान आज वाणेश्वर बाबा के नाम से विख्यात है।

 


 

सबसे पहले पूजा करती है ऊषा

 

लोगों की मान्यता हैं कि तब से लेकर आज भी वाणेश्वर मंदिर में प्रातः काल की सबसे प्रथम पूजा दैत्यराज की पुत्री ऊषा द्वारा की जाती है। मंदिर के कपाट बंद रहते है, लेकिन मंदिर में आरती की घंटी की आवाज़ लोगों द्वारा सुनी गयी है। शिवलिंग पर कई बार ताजे पुष्प चढ़े पाए गए है। सुबह होने के बाद लोग मंदिर का कपाट खुलने के बाद दर्शन के लिये जाते है। सावन माह में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। कांवडिये कावर लेकर आते है और शिवलिंग का गंगा स्नान कराते है।

 

 

 

रेवंत की मूर्तियां टीला व ऊषा बुर्ज के भी होते दर्शन 

 

सावन के महीने में मंदिर मे शिवलिंग के दर्शन करने के बाद लोग इस पावन परिसर के समीप बने शिव तालाब का पानी लेते है। वहीं बने टीला व ऊषा बुर्ज के दर्शन करते है। प्राचीन रेवंत की मूर्तियों की नक्कासी लोगों को लुभाती है। लोगों की मान्यता है कि इस माह में यहां भोलेनाथ का वास होता है। इसलिये यहां भारी भीड़ उमड़ती है। तो मंदिर के पुजारी का कहना है कि मंदिर में सावन में श्रद्धालुओं का तांता लगता है। सुरक्षा व्यवस्था के लिये पुलिस प्रशासन मुस्तैद रहता है। प्राचीनकाल से स्थापित इस मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक लोगों में विख्यात है

 

यहां है और ऐेसे पहुंचे मदिंर 

 

जिले के अंतर्गत रूरा नगर से उत्तर पश्चिम दिशा में 7 किलोमीटर दूरी पर रूरा-रसूलाबाद मार्ग पर वाणेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। यह देवालय रोड के द्वारा कहिंझरी होकर कानपुर से जुड़ा हुआ है। कहिंझरी से इस मंदिर की दुरी 8 किलोमीटर है। यहां पहुचने के लिए रूरा रेलवे स्टेशन (उत्तर मध्य रेलवे) से बस या टैक्सी के माध्यम से पहुँच सकते है। अम्बियापुर रेलवे स्टेशन से उत्तर दिशा में 4 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर स्थित है। झींझक रेलवे स्टेशन से उत्तर कर रोड द्वारा मिंडा का कुंआ से होकर वाणेश्वर महादेव मंदिर पहुँच सकते है। रसूलाबाद कस्बे से इस मंदिर की दूरी 20 किलोमीटर है। बिल्हौर रेलवे स्टेशन से उत्तर कर रसूलाबाद होकर इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है एक मीटर ऊँचे आधार (अर्धा) पर लगभग 50 सेंटीमीटर ऊँचा शिव लिंग स्थापित है जो अपने में अद्वितीय है।