केडीए : कैबिनेट मंत्री के आदेश को ठेंगा, सचिव के फरमान भी दिखावा







 

युवा गौरव। संवाददाता

 

कानपुर। केडीए के कारनामो की खबरें आये दिन सुनने को मिलती रहती है। लेकिन अभी तक मिलती रही जानकारी के अनुसार ऐसा वाकया कभी नही हुआ, कि सरकार के कैबिनेट मंत्री के आदेश को अधिकारियों ने रद्दी की टोकरी में डाल दिया हो। लेकिन वर्तमान में सरकार की कमजोरी कहें, या अधिकारियों पर छाया निरंकुशता का गुबार। क्योंकि एक मामले में कैबिनेट मंत्री सतीश महाना ने केडीए सचिव को लिखा था कि "तत्काल आवश्यक प्रभावी कार्यवाही करें।" शिकायत कर्ता ने उस पत्र को सचिव कार्यालय में दिया तो अविलम्ब उस पर "please take action as per room" लिख कर कार्यवाही के लिए अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के लिए आगे बढ़ा दिया। परंतु उक्त पत्र को देने के बाद भी जब कोई कार्यवाही नही हुई, तो पत्र के बारे में शिकायतकर्ता ने जानकारी जुटाई। जिसमे नाम न लिखने की शर्त पर एक कर्मचारी ने बताया कि मामले को देख रहे अधिकारी कह रहे है कि ऐसे न जाने कितने पत्र आते रहते है, इस पर कोई कार्यवाही नही होगी। कैबिनेट मंत्री महाना के लिखे पत्र पर जब अधिकारियों का ये रवैया है, तो आम आदमी के लिए केडीए क्या बला है, समझा जा सकता है।

 

 

 

 क्या है मामला

 

उक्त मामले के विषय मे अवगत कराते चले कि केडीए के क्षेत्र किदवई नगर स्थित एक भवन स्वामी द्वारा एक आवासीय भवन को कामर्शियल प्रयोग किया जा रहा था। और निर्माण भी बिना नक्से के करवा लिया गया। वही शिकायतकर्ता के अनुसार दूसरे भवन को निर्धारित नक्से के विपरीत निर्माण कार्य किया गया। जिसकी शिकायत की गई। और कई बार केडीए के अधिकारियों द्वारा उक्त मामलों में लिखित रूप में भी दिया गया कि जल्द ही दोनों पर कार्यवाही की जाएगी। एक भवन को शील किया जाएगा, और दूसरे भवन में अवैध रूप से निर्मित हिस्से को गिराया जाएगा। और इस प्रकार शिकायत कर्ता लगातार शिकायत करता रहा, और हर बार जवाब यही मिलता रहा, परन्तु मौके पर कोई कार्यवाही नही की गई। इन्ही मामलो को लेकर शिकायत कर्ता ने कैबिनेट मंत्री सतीश महाना से गुहार लगाई, तो मंत्री जी ने भी उक्त पत्र पर तत्काल आवश्यक प्रभावी कार्यवाही का आदेश जारी कर दिया। लेकिन शायद उन्हें भी इस बात का अंदेशा नही होगा कि केडीए के अधिकारियों द्वारा इस प्रकार का बर्ताव किया जाएगा।

 


 

मामला कैसे आया सामने

 

उक्त मामले को लेकर जब शिकायतकर्ता पुनः केडीए सचिव से मिलने के लिए पहुंचा, तो वहां तैनात कर्मचारियों ने उक्त मामले को लेकर सचिव से मिलने नही दिया। सचिव कार्यालय में तैनात लिपिक एवम चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी मामले को बाहर बाहर ही ले देकर सेट करने में माहिर है। क्योंकि मामला अगर सचिव महोदय तक पहुंच जाएगा तो मोटी कमाई नही हो सकेगी। इसलिए मामले को ऐसे ही बाहर बाहर टरकाने की कला के विशेषज्ञ सचिव कार्यालय में तैनात लिपिक एवम कर्मचारी किसी भी मामले को सचिव तक जाने ही नही देते है। ऐसा ही कुछ माहौल केडीए के उपाध्यक्ष कार्यालय का भी है। और अन्य अधिकारियों के यहां लगे कमाऊ पूत भी कुछ इसी प्रकार से दिन भर खेलते है।

 

 

 

बचाव करते दिखे अधिकारी

 

उक्त मामले में जब शिकायतकर्ता ने मीडिया के कुछ साथियों को बताई तो पत्रकारों ने सचिव से बात की, तो उन्होंने उक्त मामले में अपनी अनभिज्ञता जाहिर कर दी। और अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर मामले को टालते नजर आए। वही जब संयुक्त सचिव के के सिंह से इस बावत बात की गई तो उन्होंने भी छुट्टी के बाद मामले को देखने के लिए कहा। लेकिन विषय इतने दिन मंत्री के आदेश को रद्दी की टोकरी में डाले रहने का कारण बताने से दोनों अधिकारी बचाव करते नजर आए।