सुहागिनों ने किया करवा चौथ पर चांद का दीदार


युवा गौरव आनन्द शुक्ला


रूरा कानपुर देहात। जैसे कि सभी को पता है कि शरद पूर्णिमा के बाद चौथ को सुहागिनों का पर्व करवाचौथ हिन्दुओ का त्यौहार हौ। इस त्यौहार को भारत के साथ साथ साथ अमेरिका में रहने वाली भारतीय मूल की महिलाएँ भी मनाती है। हिन्दू समाज मे इस करवाचौथ व्रत की यह मान्यता है कि इस व्रत में गणेश जी का पूजन व व्रत सुहागिन स्त्रियां अपने पति की दीर्घ आयु के लिए करती हक़ी। प्राचीन काल मे द्विज नामक ब्राह्मण के साथ पुत्र और एक वीरावती नामक कन्या थी। वीरावती प्रथम बार करवा चौथ व्रत के दिन भूख से व्याकुल हो पृथ्वी पर मूर्छित होकर गिर पड़ी। सब भाई यह देख के रोने लगे। तब जल से मुँह धुला कर एक भाई वट व्रक्ष पर चढ़ गया। उसने चलनी में दीपक दिखा कर बहन से कहा कि चन्द्रमा निकल आया है। उस अग्नि रूप को चन्द्रमा समझ कर दुःख छोड़ वह चन्द्रमा को अर्क दे कर भोजन को बैठ गयी। पहले कौर में बाल निकला, दूसरे में छीक आई, तीसरे कौर में ससुराल से बुलावा आया गया। ससुराल में उसने देखा कि उसका पति मरा पड़ा है। संयोग से वहाँ इंद्राणी आई और उन्हें देख विलाप करती हुई वीरावती बोली कि हे माँ मुझे ये किस अपराध का फल मिल। तब माँ इंद्राणी ने कहा कि तुमने बिना चंद्रमा को अर्क दिए भोजन किया यह उसी का फल है। अतः अब तुम बारह माह के चौथ का व्रत व करवाचौथ का व्रत श्रद्धा से भक्ति से विधिपूर्वक करो तब तुम्हारा पति जीवित होगा। इंद्राणी के बात मान कर वीरावती में सभी व्रत करे और अपने पति को दीर्घ आयु का वरदान पाया। तभी से सही औरते करवाचौथ का व्रत अपने पति की लंबी आयु का रखती चली आ रही है। रूरा में भी विभिन्न स्थानों पर औरतो ने करवा चौथ का व्रत रख चाँद को अर्घ देखर अपना व्रत तोड़ा।