कहानी - घर है या मुशाफ़िर खाना


लेखिका - आकांक्षा द्विवेदी


बिंदकी फतेहपुर, यूपी 


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रामू काका मैं अपनी किटी पार्टी में जा रही हूँ तुम आयुष को स्कूल बस से ले आना और खाना खिला देना ।फिर शीशे में अदा से एक नज़र डाल कर प्रिया खट खट करती सैंडिलों से बाहर को चली गई । दादा जी से पूछने की जरूरत भी नही समझी । एक गहरी सांस ले कर दादा जी कुर्सी पर बैठ कर रामू को काम करते देखते रहे मन अजीब सा एक उदासी में डूब गया । आज गांव से आये हुए उन्हें लगभग एक महीना हो चला था पर कभी भी एक घर की तरह बेटे बहु को एक साथ खाना खाते नही देखा था । बेटा उनका इंजीनयर था उसे काम से फुरसत नही मिलतीऔर बहू को फैशन किटी पार्टी से कभी फुरसत ही नही मिली कि वो कुछ वक्त बाबू जी के साथ बिता ले ।



अचानक उन्हें आयुष के आने की बात याद आयी उन्होंने रामू काका को काम करते रहने को कहा और स्वयं आयुष को स्कूल बस से लेने चले गए ।कुछ देर में बस आ गयी आयुष बस से दादाजी दादा जी कहते हुए उतरा औऱ भाग कर उनसे लिपट गया।
दादा जी ने आयुष का बैग ले लिया और उसकी नटखट बातो को सुनते हुए वो घर आ गए घर ये उन्हें कभी घर नही लगा लगा तो केवल सराय खाना जहा मुसाफिर केवल रात बिताने को आते ।



आयुष की वजह से वो अभी तक रुके हुए थे वरना कब का वो गाँव निकल जाते । उसकी प्यारी प्यारी बातो ने उनको रोका हुआ था । खाना खा कर आयुष उनके साथ आ कर खेलने लगा। बोला दादा जी मैं भी इस बार आपके साथ गाँव चलूंगा मम्मी पापा कभी ले कर नही जाते ।उन्हें याद उनका बेटा मोहन स्वय 10 सालो से गाँव नही गया तो बेटे को क्या  ले जाता ।



उन्होंने आयुष के सर पर हाथ फेरते हुए कहा जरूर बेटे ।तभी रामु काका ये कहते हुए आये की ट्यूशन वाले सर जी आ गए बड़ी मुश्किल से वो आयुष को ले जाने में सफल हुए आयुष दादा जी को छोड़ ही नही रहा था ।गाँव के खुले वातावरण में रहने वाले दादा जी को शहर का ये घर एक पिजरे की तरह लगता जहाँ उन्नति का साधन बस पैसो से आंका जाता ।रिश्तों और जज्बातो को कोरी बातो में उड़ा दिया जाता ।शाम होते ही बेटा अंदर आया आया और अजनबी की तरह उनको देख कर अपने कमरे में चला गया ये भी नही पूछा कि पापा आप बोर तो नही हुए थोड़ी देर में खट खट करते हुए बहु भी  आ गयी ।



किसी के पास उनके लिए वक्त नही था वो सोच कर आये थे कि गाँव का घर औऱ खेत बेच कर अपने बेटे पास रहेंगे । पर यहाँ के रंग ढंग को देख कर उनका मन बिदक गया था ।



रात को खाने की मेज पर बेटे ने कहा बाबू जी गाँव की जमीन व घर बेच दिया जाए और उससे शहर मे एक आलीशान कोठी ले ली जाए ।उन्होंने बेटे की तरफ निराश भरी आंखों से देखा और अपने कमरे में चले गए । रात को आयुष उनके पास आया और कहानी सुनाने की ज़िद करने लगा वो उसे कहानी सुनाने ही वाले थे कि बहु अंदर कमरे में आई और आयुष को कल स्कूल जाना है कहते हुए जबरदस्ती ले गयी बाबू जी को अब इस घर मे घुटन सी होने लगी थी जहाँ पर इंसान तो थे पर भावना का अहसास तक नही था ।



वो लेट कर बहु बेटे की इस मशीनी जिंदगी को सोचते रहे ।फिर उन्होंने एक फैसला लेते हुए राहत की सांस ली और सो गए ।
सुबह जब वो सैर करके आये तो उन्हें घर मे कोई नही मिला सिवाय रामू काका के नहा कर उन्होंने अपना बैग लगा लिया और एक चिट्ठी रामू काका को दे कर वो बाहर गाँव निकल गए ।



शाम को बेटा बहु आये तो रामू काका ने उन्हें वो पत्र दे दिया ।रामू काका उन्हें दादा जी जाने की बात भी बता दी तो बेटा चौक उठा और बोला क्यो क्या घर के नॉकर ने उनसे कुछ कहा रामू काका ने बताया टहल कर आये दादा जी आते ही बैग ले कर बिना कुछ खाये ये पत्र आपको देने के लिए कह कर वो चले गए



पत्र को खोल कर बेटे ने जब देखा तो उसका मुँह उत्तर गया बहु ने पूछा क्या लिखा हैं तो वो पत्र उन्होंने बीबी को दे दिया । बीबी ने पत्र खोल और पढ़ने लगी ^ बेटा मैं यहाँ अपने परिवार के साथ रहने का इरादा करके आया था पर यहाँ किसी को वक्त नही मेरे साथ बिताने को गाँव का घर और जमीन बेच कर मैं तुम लोगो के साथ इस घर मे रहना चाहता था पर यहाँ रिश्ते मशीन के समान हो गए है किसी के किसी को देने के लिए वक्त ही नही इसलिए मैं वापस अपनी दहलीज पर जा रहा हूँ । अब गाँव मे अपनी जमीन बेच कर एक स्कूल खोल कर निशुल्क गाँव के बच्चो को पढ़ने में मदद करुगा । वही रह कर मैं अपना वक्त काट लूंगा । शुभाशीष तुम दोनों को और आयुष को मेरा प्यार देना ।



पत्र को पढ़ कर दोनों बहु बेटे चुपचाप हो गए ।



गाँव पहुँच कर खुली हवा में सांस लेते हुए बाबू जी एक नए निर्णय के साथ मजबूत कदमो से मुस्कराते हुए अपने घर की ओर चल पड़े।