सदीयों का सल्तनत डूबा
ढूँढे न मिला चिराग
प्रजा सब पूछ रहा
कुछ तो करो उपाय।
राजा को चिंता हुई
कैसे संभाले राज
चिराग कोई अपना नहीं
सबके सब तोडे खाट।
मंद हुआ व्यापार
बंद हो रहे बाजार
क्षत विक्षप्त व्यवस्था पर
गुम होते घर का चिराग।
आवो हवा भी जहरीली ठहरी
घुट रहा दम सुन्न होते दिमाग
अपनी तो सब सुविधा ढूँढे
प्लेन में ही कराते इलाज।
मुफ्त मुफ्त कहकर
उसूला जनता से कसकर
अब सब नौटंकी का देखो
कैसे हो रहा पर्दाफाश।
सेवा भाव तो अब गायब हुए
मेवा भाव जबसे शामिल हुआ
काम काम सब चिल्लाए मगर
काम तो रूटीन से ही गायब हुआ।
कवि आशुतोष
पटना बिहार