शिक्षकों को न्याय दिलाने के लिए सरकार से करेंगे वार्ता - महासचिव

 

युवा गौरव। संवाददाता

दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय टीचर एसोसिएशन के  नेतृत्व में पिछले 8 दिनों से चल रहे।शिक्षकों के आंदोलन पर अभी तक सरकार ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई है।दिल्ली विश्वविद्यालय में 4500 तदर्थ सहायक प्रोफेसरों की बड़ी दयनीय स्थिति है,जो सामाजिक असुरक्षा के बीच विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों/विभागों में लंबे समय से पढ़ा रहे हैं। 2010 के बाद से,विश्वविद्यालय में स्थायी नियुक्तियों के लिए कोई बड़ा अभियान नहीं चला है।कांग्रेस पार्टी के महासचिव वेणुगोपाल ने कहा शिक्षकों को न्याय दिलाने के लिए सरकार से वार्ता करेंगे।उन्होंने कहा की 2007 में ओबीसी वर्ग के लिए 27% आरक्षण लागू होने के बाद कॉलेजों और विभागों में रिक्तियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई।  विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमानुसार 10% से अधिक अस्थाई शिक्षकों को नहीं रखा जा सकता किंतु फिलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय में 50% से अधिक तदर्थ अध्यापकों की संख्या बढ़ गई है।गैर-स्थायी शिक्षकों के लिए स्वीकृत पदों के अधिकतम 10% के अनुमत यूजीसी मानदंड का उल्लंघन है।यूजीसी द्वारा निर्धारित मानदंड यूजीसी नेट / जेआरएफ,एम फिल,पीएचडी और पोस्ट-डॉक्टरेट आदि जैसी सभी अपेक्षित शैक्षणिक योग्यताएं पूरी करने के बावजूद दिल्ली विश्वविद्यालय में इन शिक्षकों को भेदभाव के तहत सेवा करने के लिए मजबूर किया जाता है।दिल्ली विश्वविद्यालय में पिछले कुछ वर्षों से यूजीसी के दिशा-निर्देशों,विभिन्न कानूनी आदेशों और समान काम के लिए समान वेतन के अधिकार सहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले पर्याप्त पदों पर पिछले कई वर्षों से तदर्थ अध्यापकों का शोषण किया जा रहा है।ये शिक्षक कई लाभों से वंचित हैं जैसे,वार्षिक वेतन वृद्धि,मातृत्व अवकाश,करियर में वृद्धि,और चिकित्सा लाभ और यहां तक ​​कि गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार से भी वंचित हैं।तदर्थ शिक्षकों का कार्यकाल चार महीने के लिए निर्धारित किया जाता है,जो कि संतोषजनक सेवा रिकॉर्ड और साक्षात्कार के आधार पर आगे बढ़ाया जाता है।दिल्ली विश्वविद्यालय और इसके संबद्ध कॉलेजों में तदर्थ शिक्षकों की शोषणकारी और अमानवीय सेवा की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तदर्थ महिला शिक्षक अपनी गर्भावस्था की अवधि के दौरान कुछ समय के लिए सेवा छोडने  के लिए मजबूर होती हैं।अध्यापन कार्य में  तदर्थ अस्थाई शिक्षक की प्रथा  इतनी गंभीर है कि यह न केवल तदर्थ अस्थायी शिक्षकों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि देश के गुणवत्ता और सस्ती उच्च शिक्षा के प्रमुख संस्थान  के शिक्षण-गुणवत्ता वाले शिक्षण वातावरण के लिए भी प्रतिकूल है।दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद दिल्ली विश्वविद्यालय को 31 जुलाई 2017 तक इन सभी रिक्त पदों को भरने का निर्देश दिये गए किंतु  फिर इन पदों को स्थायी आधार पर भरने में असफल रहे हैं |  उच्च शिक्षा के अधिकांश सार्वजनिक वित्तपोषित संस्थानों को संकायों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है और इनमें से अधिकांश को तदर्थ / अनुबंध के आधार पर असुरक्षित कार्यकाल के साथ नियोजित किया गया है। जैसा कि जीओआई की विभिन्न रिपोर्ट के अनुसार  अकादमिक पेशे की लोकप्रियता में लगातार गिरावट दर्ज की है।सरकार ने इससे पहले कई बार अस्थाई शिक्षकों को नियमित करने के ऐतिहासिक कदम उठाए हैं।दिल्ली विश्वविद्यालय में ऐसे कदम वर्ष 1979-80,1987-88, 1998-99 और 2003 में उठाए गए थे।अस्थायी अध्यादेश 13-A सभी अस्थायी शिक्षकों को  स्थायी किया गया।राजस्थान सरकार ने 2010 अध्यादेश 200 के माध्यम से अस्थायी शिक्षकों को स्थाई किया था।